
Gyan vigyan sangam
" पुरातन युग में ज्ञान-विज्ञान का संगम "
Menu


⬇ Click Here to Play Audio File
खगोल विज्ञान और सिद्धांत

● खगोल विज्ञान और सिद्धांत (Astronomy)
-
आधुनिक विज्ञान: खगोल विज्ञान
-
योगदानकर्ता: गैलीलियो गैलीली (खगोल विज्ञान के जनक)
-
विवरण: दुनिया भर के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित आधुनिक विज्ञान खगोल विज्ञान, अध्ययन का एक सतत क्षेत्र है जिसमें 17वीं शताब्दी के बाद से तेजी आई है। यह ब्रह्मांड को समझने के लिए उन्नत प्रौद्योगिकियों और गणितीय मॉडल का उपयोग करते हुए खगोलीय घटनाओं की खोज करता है।
-
समय अवधि: 1564-1642
-
समय अवधि: भारतवर्ष (आर्यभटीय - 499 ई.)
-
स्थान: भारतवर्ष
-
स्रोत: आर्यभटीय, गणितपाद, श्लोक 10:
"सप्ततिः खगोलस्य यः सिद्धान्तानां पुरस्कृतः"
"जो खगोल विज्ञान के सिद्धांतों को आगे बढ़ाता है, उसे सत्तर बुद्धिमान पुरुषों में सम्मानित किया जाता है।"
श्लोक 1.6:
"गोलाद्यायां गोलवाद्यैरञ्जितायां विशुद्धमार्गे योजनायां।"
"गोले में, जब भूमध्य रेखा गोले द्वारा पहुंचती है, शुद्धतम पथ में, योजन में।"
-
यह श्लोक पृथ्वी की परिधि के मापन पर चर्चा करता है।
श्लोक 2.21:
"या रेखा सूर्यांशुक्रसानुयोगिनी सा संख्यामात्रेण समासतो भवेत्।"
"सूर्य और पृथ्वी की छाया को जोड़ने वाली रेखा संख्यात्मक मान के समान है।"
-
यह श्लोक ग्रहण के दौरान सूर्य और पृथ्वी की छाया को जोड़ने वाली रेखा और उसके संख्यात्मक मान के बीच संबंध पर चर्चा करता है
श्लोक 3.1:
"गोलार्कचन्द्राणि गतिकराणि।"
"गोले, सूर्य और चंद्रमा में गति है।"
व्याख्या: आचार्य आर्यभट्ट आकाशीय पिंडों की गति पर बल देते हुए, गोले, सूर्य और चंद्रमा की गति पर जोर देते हैं।
आर्यभटीय गणितपद, श्लोक 3.14, में पाई (π) के मूल्य के बारे में एक प्रासंग है और यहां उसका अनुवाद और स्थितिक मिलेगा:
आर्यभटीय, गणितपद, श्लोक 3.14:
"गोपीभाग्य मधुव्रातः शृङ्गिशोदधिसंधिगः।
सखी लेक्षणसंस्था सशरीर मुक्तयः।
विभाग चक्रवाले शृङ्गिर्यंत्रे शब्दयोजने।
द्वादशाध्यायिका स्थिरास्त्रिंशद्द्वादशाक्षरा।। 3.14।।"
अर्थ : "आर्यभट ने यहां पाई (π) की मान को 3.1416 के आस-पास बताया है। इस श्लोक में उन्होंने ज्यों कि दिन-रात के भेद, मास का अंतरग्रहण, वर्ष का अंतरग्रहण, राशि-मण्डल का वृत्त, भाग्य, चंद्रमा की दैहिक गति आदि को 32 भागों में विभाजित किया है, और एक वृत्त को 360 डिग्री में विभाजित करके पाई की मान को लगभग 3.1416 के आस-पास बताया है।"
-
आधुनिक विज्ञान कनेक्शन: आर्यभटीय द्वारा उदाहरणित सिद्धांतों ने आधुनिक विज्ञान एवं खगोल विज्ञान में योगदान दिया, जिससे खगोलीय घटनाओं के बारे में हमारी समझ को आकार मिला।
-
प्राचीन विज्ञान: आचार्य आर्यभट्ट (खगोल विज्ञान और गणित के विद्वान) के विभिन्न सिद्धांत (जैसे, आर्यभटीय)
-
निष्कर्ष: आधुनिक विज्ञान और खगोल शस्त्र, विश्व स्तर पर वैज्ञानिकों के योगदान के साथ, 17वीं शताब्दी से लगातार विकसित हुआ है। प्राचीन भारत में, आर्यभटीय (499 ई.पू.) सहित विभिन्न सिद्धांतों ने खगोलीय ज्ञान को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। आर्यभटीय का प्रदान किया गया श्लोक खगोल विज्ञान के सिद्धांतों में योगदान देने वालों को दिए गए सम्मान पर जोर देता है, जो प्राचीन और आधुनिक वैज्ञानिक विचार, दोनों पर प्राचीन भारतीय खगोलीय परंपराओं के स्थायी प्रभाव को उजागर करता है।



आचार्य आर्यभट्ट (खगोल विज्ञान और गणित के जनक)
ग्वालियर के एक हिंदू मंदिर के शिलालेख पर अंक 0 (875 ई.)
संस्कृत संख्या प्रणाली
बख्शाली पांडुलिपि पर शून्य एक बिंदु के रूप में पाया जाता है।

गैलीलियो गैलीली
