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आविष्कारक:आर्यभट्ट (४९९ ईस्वी पूर्व)
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समय काल: प्राचीन विज्ञान भारतवर्ष (आर्यभटीय - 499 ईस्वी पूर्व)
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आर्यभटीय जैसे कार्यों द्वारा प्रस्तुत सिद्धांत का समय 499 ईस्वी पूर्व का है।
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स्थान: भारतवर्ष
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सिद्धांतों का विकास और अध्ययन प्राचीन भारत में किया गया था, जो इस क्षेत्र की बौद्धिक परंपराओं को दर्शाता है।
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स्रोत: आर्यभटीय, गोलपाद
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आर्यभटीय, विशेष रूप से गोलपाद, पृथ्वी के घूर्णन से संबंधित पहलुओं का विवरण देने वाले स्रोत के रूप में कार्य करता है।
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प्रमाण:
आर्यभटिया, गोलपाद-श्लोक:
"पृथिव्यामधस्ताद्वृत्तः स्वयं ध्रुवमिवाचलः।
यः स्वयं सूर्यमन्विष्टं तं ज्ञात्वा सचरं स्थितम्।"
अर्थ: नीचे स्थिर ध्रुव तारे की तरह पृथ्वी स्वयं घूमती है। यह जानते हुए कि यह सूर्य के साथ चलती है, पृथ्वी को स्थिर समझो।
आर्यभटीय के इस श्लोक में आर्यभट्ट पृथ्वी की गति का वर्णन करते हैं। उन्होंने पृथ्वी के घूमने की तुलना स्थिर ध्रुव तारे से करते हुए बताया कि पृथ्वी स्थिर ध्रुव तारे की तरह स्वयं घूमती है। पृथ्वी के घूमने के बावजूद,आर्यभट्ट में सूर्य के साथ इसकी समकालिक गति को पहचानते समय इसे स्थिर मानने का सुझाव देते हैं। यह श्लोक आर्यभट्ट के सूर्यकेन्द्रित मॉडल को दर्शाता है, जहाँ पृथ्वी के घूर्णन को सूर्य के चारों ओर उसकी कक्षा के संदर्भ में स्वीकार किया गया है।
यह इस बात का प्रमाण है कि प्राचीन भारतीय जानते थे कि गोलाकार पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है और सूर्य के चारों ओर भी घूमती है।
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आधुनिक विज्ञान से संबंध: आर्यभटीय द्वारा उदाहरणित सिद्धांतों ने पृथ्वी के घूर्णन की समझ सहित आधुनिक खगोल विज्ञान में योगदान दिया।
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सिद्धांत, विशेष रूप से आर्यभटीय, पृथ्वी के घूर्णन की समझ में अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं, प्रारंभिक खगोलीय ज्ञान में प्राचीन भारतीय योगदान को प्रदर्शित करते हैं। यह संबंध प्राचीन काल से आधुनिक काल तक ज्ञान की निरंतरता पर प्रकाश डालता है।
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आधुनिक विज्ञान: पृथ्वी का घूर्णन
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योगदानकर्ता: निकोलस कोपरनिकस (१४७३-१५४३)
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पृथ्वी के घूर्णन की वैज्ञानिक समझ निकोलस कोपरनिकस द्वारा ब्रह्मांड के अपने मौलिक सिद्धांत में प्रदान की गई है।
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स्थान: यूरोप
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पृथ्वी के घूर्णन का अध्ययन एक वैश्विक वैज्ञानिक प्रयास है, जिसमें विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों के शोधकर्ता शामिल हैं।
निकोलस कोपरनिकस
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प्राचीन विज्ञान: सिद्धांत (जैसे, आर्यभटीय)
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निष्कर्ष: आधुनिक विज्ञान में पृथ्वी के घूर्णन की समझ पुरातन भारतवर्ष के योगदान का परिणाम है। प्राचीन भारत में उत्पन्न आर्यभटी य जैसे सिद्धांतों ने खगोलीय समझ को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जिसमें पृथ्वी के घूर्णन की अंतर्दृष्टि, प्रकाश की गति, गृह एवं सूर्य की दूरी, भी शामिल है।
आर्यभट्ट
पृथ्वी भी ध्रुव तारे की तरह घूमती है (आर्यभट्ट द्वारा सिद्ध)
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पृथ्वी का घूर्णन (Rotation) और सिद्धांत