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आधुनिक विज्ञान: एनाटॉमी और फिजियोलॉजी
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योगदानकर्ता:
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एंड्रियास वेसालियस (1514-1564) एनाटॉमी के जनक
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अल्ब्रेक्ट वॉन हॉलर (1708 - 1777) फिजियोलॉजी के जनक
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क्लॉड बर्नार्ड (1813 - 1878) फिजियोलॉजी के जनक
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एंड्रियास वेसालियस
क्लॉड बर्नार्ड
अल्ब्रेक्ट वॉन हॉलर
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प्राचीन विज्ञान: प्राचीन मानव शरीर रचना विज्ञान
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समय अवधि:
आचार्य चरक (चिकित्सा के जनक) पहली शताब्दी ई.पू
आचार्य सुश्रुत (सर्जरी और चिकित्सा विज्ञान के जनक) छठी शताब्दी ईसा पूर्व
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स्त्रोत: आयुर्वेदिक ग्रंथ (सुश्रुत संहिता) भारतवर्ष में प्राचीन काल से उत्पन्न हुए हैं, जो मानव शरीर रचना विज्ञान (human anatomy) के प्रारंभिक ज्ञान को दर्शाते हैं।
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स्थान: भारतवर्ष
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साक्ष्य: आयुर्वेद, चिकित्सा की प्राचीन भारतीय प्रणाली, स्वास्थ्य देखभाल के लिए समग्र दृष्टिकोण के साथ-साथ मानव शरीर रचना विज्ञान में विस्तृत अंतर्दृष्टि प्रदान करता है। चरक संहिता और सुश्रुत संहिता सहित मूलभूत आयुर्वेदिक ग्रंथ मानव शरीर की संरचना, कार्यों और अंतर्संबंधों के बारे में विस्तार से बताते हैं।
1. आचार्य चरक (चिकित्सा के जनक) द्वारा लिखित चरक संहिता: चरक संहिता, जिसका श्रेय ऋषि चरक को जाता है, आयुर्वेद के सबसे पुराने और सबसे आधिकारिक ग्रंथों में से एक है। यह निदान, उपचार और मानव शरीर को समझने के सिद्धांतों पर व्यापक रूप से चर्चा करता है।
श्लोक पता: सूत्रस्थान, अध्याय 4:
शरीरं आत्मनः प्रतिष्ठं दुःखस्योपशमं द्रव्याणि च।
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अर्थ: शरीर स्वयं का निवास स्थान, दुखों का निवारण करने वाला और पदार्थों का भंडार है।
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चरक संहिता का यह श्लोक स्वयं के निवास स्थान के रूप में शरीर के महत्व पर जोर देता है और उचित समझ और देखभाल के माध्यम से पीड़ा को कम करने में इसकी भूमिका को पहचानता है।
2. आचार्य सुश्रुत (सर्जरी और चिकित्सा विज्ञान के जनक) द्वारा लिखित सुश्रुत संहिता: सुश्रुत संहिता का श्रेय महर्षि सुश्रुत को दिया जाता है । यह सर्जरी पर ध्यान केंद्रित करने वाला एक मूलभूत पाठ है, जिसमें शरीर रचना विज्ञान, शल्य चिकित्सा तकनीकों और औषधीय उपचारों का विस्तृत विवरण शामिल है।
श्लोक पता: सूत्रस्थान, अध्याय 5:
शरीरे शङ्खचक्रादिभिराहतं भूतले।
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अर्थ: शरीर की तुलना विभिन्न भागों वाले एक पहिये से की गई है।
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सुश्रुत संहिता का यह श्लोक शरीर की तुलना एक पहिये से करता है, जो परस्पर जुड़े भागों के साथ इसकी बहुमुखी प्रकृति पर प्रकाश डालता है।
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आयुर्वेदिक शरीर रचना विज्ञान में अवधारणाएँ: आयुर्वेदिक शरीर रचना, शरीर का वर्णन दोष (जैविक ऊर्जा), धातु (ऊतक), और मल (अपशिष्ट उत्पाद) के संदर्भ में करती है। त्रिदोष सिद्धांत (वात, पित्त, कफ) शारीरिक और रोग संबंधी प्रक्रियाओं को समझने में मौलिक है।
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आयुर्वेदिक ग्रंथ परिसंचरण (Circulation) स्रोतों, अंगों और महत्वपूर्ण बिंदुओं के बारे में भी जानकारी प्रदान करते हैं। विवरणों में अंगों, कार्यों और शारीरिक प्रक्रियाओं पर दोषों के प्रभाव का विस्तृत वर्गीकरण शामिल है। यह मानव शरीर पर एक अद्वितीय और समग्र दृष्टिकोण प्रदान करता है, जो शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक कल्याण के अंतर्संबंध पर जोर देता है।
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आधुनिक विज्ञान से संबंध: आयुर्वेदिक ग्रंथ, विशेष रूप से सुश्रुत संहिता, मानव शरीर रचना विज्ञान (Human Anatomy) और शल्य चिकित्सा प्रक्रियाओं की प्रारंभिक समझ को प्रदर्शित करते हैं। सुश्रुत संहिता के अध्याय, प्राचीन काल में मानव शरीर रचना विज्ञान में उन्नत ज्ञान का प्रमाण प्रदान करते हैं, जो चिकित्सा पद्धतियों की ऐतिहासिक समझ में योगदान करते हैं।
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आयुर्वेदिक ग्रंथ
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निष्कर्ष: आधुनिक विज्ञान, शरीर रचना विज्ञान और शल्यक्रिया के क्षेत्र में वैश्विक योगदान के साथ विकसित हुआ है, परंतु आयुर्वेदिक ग्रंथ, विशेष रूप से सुश्रुत संहिता, मानव शरीर रचना विज्ञान और शल्य चिकित्सा प्रक्रियाओं में प्रारंभिक अंतर्दृष्टि कई वर्षों पहले से ही प्रदान करते हैं। प्राचीन और आधुनिक ज्ञान के बीच यह संबंध, चिकित्सा विज्ञान में प्राचीन भारतीय योगदान के अद्वितीय प्रभाव पर प्रकाश डालता है।
आचार्य चरक उपचार करते हुए
आयुर्वेदिक ग्रंथों में मानव शरीर रचना आरेख (diagram) की तुलना आधुनिक मानव शरीर रचना आरेख से की गई है।
आचार्य सुश्रुत सर्जरी करते हुए
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मानव शरीर-रचना विज्ञान (Human Anatomy)
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