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Father of Indian Medical Sciences and Surgery
महर्षि सुश्रुत के शल्य चिकित्सा उपकरण
महर्षि सुश्रुत अपने शिष्यो को चिकित्सा नीति और आयुर्वेदिक संहिता की शिक्षा दे रहे है।
सुश्रुत संहिता में मानव शरीर रचना आरेख (diagram)
''सुश्रुत'' तरबूज़ पर प्लास्टिक सर्जरी का प्रयोग कर र हे हैं।
महर्षि सुश्रुत द्वारा मोतियाबिंद सर्जरी
भ्रूण विकास के चरण
योगदान
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महर्षि सुश्रुत खोपड़ी की सर्जरी करते हुए
प्राचीन भारतीय साहित्य, विज्ञान का एक महत्वपूर्ण रूप है, जिसमें महर्षि सुश्रुत का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण है। महर्षि सुश्रुत, जिन्हें 'शल्यचिकित्सा जनक' (Father of Surgery) भी कहा जाता है, विश्व के सबसे प्राचीन चिकित्सा शास्त्रकारों में से एक थे जिन्होंने अपने समय में चिकित्सा और शल्य चिकित्सा (Surgery) के क्षेत्र में महान कार्य किए।
महर्षि सुश्रुत ने अपने कार्यों में चिकित्सा की विभिन्न शाखाओं में महान योगदान दिया। उनके द्वारा किए गए शल्यचिकित्सा संबंधित अनेक सुरक्षित और सफल शल्यक्रियाएँ (Surgical Treatments) आज भी अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती हैं।
महर्षि सुश्रुत ने आंतरिक और बाह्य रूप से होने वाले रोगों के उपचार के लिए विभिन्न प्रकार की शल्यक्रियाएँ विकसित कीं। उनकी संजीवनी बूटी जैसी अद्वितीय बूटियों का उपयोग भी विभिन्न रोगों के इलाज में किया जाता था।
"सुश्रुत संहिता" में आचार्य सुश्रुत ने चीरा पुरंजन विधि का विवेचन किया है, जिसमें उन्होंने आंतरिक रोगों के इलाज के लिए कई प्रकार की सुरक्षित और प्रभावी शल्यक्रियाएँ वर्णित की है।
आचार्य सुश्रुत का योगदान सिर्फ चिकित्सा तक ही सीमित नहीं रहा, बल्कि उन्होंने रसायन, ज्योतिष, और योग आदि विभिन्न क्षेत्रों में भी अपनी शिक्षाएं दीं। इसके लिए उन्हें 'भारतीय चिकित्सा के पितामह' (Father of Indian Medical Sciences) के रूप में सम्मानित किया गया है।
सुश्रुत का अद्वितीय ग्रंथ 'सुश्रुत संहिता' एक महत्वपूर्ण स्रोत है जिसमें विभिन्न चिकित्सा विद्याओं के सिद्धांत, उनके उपयोग और अनुभव का विवेचन किया गया है जिसके द्वारा आज का आधुनिक विज्ञान विकास की ओर गति कर रहा है ।
महर्षि सुश्रुत का योगदान संस्कृति और चिकित्सा शास्त्र में अत्यधिक महत्वपूर्ण है। उनके शल्यतंत्र के क्षेत्र में दिए गए अनेक उपदेश एवं सूत्र संहिताओं में उनकी अमूर्त विद्या को स्पष्ट करने के लिए हम उनकी 'सुश्रुत संहिता' से विशेष उदाहरण प्रस्तुत करेंगे।
सुश्रुत संहिता में शल्यक्रियाओं का अद्वितीय विवेचन मिलता है। उन्होंने चीरा पुरंजन विधि के संबंध में यह कहा है:
(सुश्रुत संहिता, चिकित्सा स्थान, 5.4)
यत्र यत्र शरीरस्थो रुजां ग्रामस्थ वा वयः।
तत्र तत्र शल्यकरो गृहीत्वा चोपशोधयेत्।।
अर्थ :
इस श्लोक से सुश्रुत जी बता रहे हैं कि जहां-जहां शरीर में रोग होगा, वहां-वहां शल्यचिकित्सकों को बुलाकर रोगी का इलाज करना चाहिए। इससे शल्यक्रिया के माध्यम से विभिन्न बीमारियों का सफल इलाज संभव होता है।
सुश्रुत जी ने चिकित्सा के क्षेत्र में अनेक प्रकार की शल्यक्रियाओं का विवेचन किया है जिसमें उन्होंने कृष्णवर्ण (काला) ग्रंथिका, पुलका, विश्वभेदक, विडूरक, वर्तुलाक, आदि प्रकारों के शल्यक्रियाओं का विस्तार से वर्णन किया है।
महर्षि सुश्रुत का योगदान आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में भी अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि उनकी शल्यक्रियाएँ आज भी विश्वभर के चिकित्सकों के लिए प्रेरणा स्रोत है और उनकी विद्या से ही हम विज्ञान की ऊँचाइयों को प्राप्त कर सकते है। महर्षि सुश्रुत, भारतीय चिकित्सा विज्ञान के अद्वितीय अद्यतित प्रणेता और योगदानकर्ता रहे हैं।
उन्होंने विभिन्न प्रकार की शल्यक्रियाएं स्थापित कीं, जिनमें सूजन निवारण, शल्यप्रयोग, और रक्तनिर्णय आदि शामिल थे। उनकी यह विज्ञानशील शल्यचिकित्सा शैली ने चिकित्सा क्षेत्र में एक नई दिशा प्रदान की और उन्हें 'शल्यचिकित्सा का जनक' बना दिया।
महर्षि सुश्रुत की श्रेष्ठता अवर्णनीय है। वे आज के आधुनिक विज्ञान को सर्वप्रथम शल्यक्रिया (surgery) से अवगत करवाने वाले चिकित्सा विज्ञान के जनक है। अपने उत्कृष्ट शल्यचिकित्सा ज्ञान से इस विश्व को 200 से भी अधिक surgery की प्रक्रिया एवं रीत देने वाले और 300 के करीब शल्यक्रिया ओज़ार निर्माण की विधियाँ प्रदान करने वाले वे एकमात्र वैज्ञानिक है। उन्होंने अपनी सुश्रुत संहिता में दांत स्वास्थ्य एवं दांत शल्यचिकित्सा, मोतिया बिन्द का इलाज, प्लास्टिक surgery, सिजेरियन, एवं जटिल से जटिल brain surgery, और ना जाने कितनी ही शल्यक्रियाओं की पद्धति अति निपुण तरीके से बताई है, जो आधुनिक चिकित्सा विज्ञान को आज भी प्रेरणा देती है। ऐसे महान शल्य चिकित्सक एवं चिकित्सा विज्ञान के जनेता महर्षि सुश्रुत को शत शत वंदन।