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आचार्य आर्यभट्ट: महान गणितज्ञ एवं खगोलशास्त्र के विद्वान
Great Mathematician and Scholar of Astronomy





आचार्य आर्यभट्ट, जिन्हें भारतीय गणित और खगोलशास्त्र(Astronomy) के प्रथम महान शिक्षागुरु के रूप में जाने जाता है, जिन्होने अपने योगदान से भारतीय गणितीय और खगोलशास्त्र को एक नये उच्चतम स्तर पर ले जाने में सफलता प्राप्त की है।
आचार्य आर्यभट्ट का प्रमुख योगदान उनके ग्रंथ 'आर्यभटीय' में मिलता है, जो गणितीय सिद्धांतों और खगोलीय तथ्यों का एक सशक्त संग्रह है। इस ग्रंथ में आचार्य आर्यभट्ट ने सूर्य, चंद्रमा और ग्रहों की गति तथा उनकी उत्पत्ति के लिए अपनी अद्वितीय धाराएं प्रस्तुत की है।
आचार्य आर्यभट्ट के ग्रंथ 'आर्यभटीय' में संस्कृत में कई श्लोक हैं, जो उनके उत्कृष्ट ज्ञान को प्रमाणित करते हैं। एक ऐसा श्लोक है:
(आर्यभाटीय अध्याय १, श्लोक १.३ )
त्रिकोणस्याप्यनुष्ठाने योजनायां वचनात्मनः।
इसका हिंदी अनुवाद है:
त्रिकोण के अनुष्ठान में भी अपनी अपनी योजना का उपयोग करना।
अर्थ:
यह छंद त्रिभुजों के सिद्धांतों को गणना और मापन में समझने और लागू करने के महत्व को प्रमुखता देता है। इसमें गणितीय अवधारणाओं के महत्व को व्यावसायिक अनुप्रयोगों में संज्ञान में लाने का महत्व बताया गया है।
आचार्य आर्यभट्ट के ग्रंथों और सिद्धांतों का सीधा प्रभाव आज के युग में भी दिखाई देता है। उनके खगोलशास्त्रीय सिद्धांतों ने सौरमंडल एवं ग्रहों की गति को समझने में मदद की है। उनके रेखांकन सिद्धांतों ने गणितीय रूप से सामाजिक और आर्थिक गणना में सुधार किया है।
आचार्य आर्यभट्ट का योगदान हमें यह दिखाता है कि हमारी संस्कृति में गणित और खगोल क्षेत्र (Astronomy) में उन्नति का एक गहरा इतिहास है, जिसने आधुनिक विज्ञान और गणित को भी प्रेरित किया है।
आचार्य आर्यभट्ट ने सर्व प्रथम यह घोषित किया है की पृथ्वी अपने axis पर स्थित है और स्थित हो कर वह अपने स्थान पर घूमती है। उनकी पुस्तक आर्यभट्टीय के गोलपाद मे उन्होंने earth rotation और revolution के रहस्य को उजागर किया है। इतना ही नही किन्तु उन्होंने सूर्य ग्रहण एवं चंद्र ग्रहण का होना और उनके वैज्ञानिक कारणों को भी बताया है। आचार्य आर्यभट्ट ने यह भी कहा है की चंद्र एवं अन्य ग्रहों के पास खुद का प्रकाश ना होने के कारण वह सूर्य के परावर्तित प्रकाश से प्रकाशवान होते है। गणित शस्त्र मे भी उनके योगदान को यह भूमि कदापि नहीं भूल पाएगी। उन्होंने इस विश्व को PI (π) का मूल्य दिया जो की 3.1415 होता है। ऐसे महान गणितज्ञ एवं खगोल शास्त्री आचार्य आर्यभट्ट को हमारा शत शत वंदन।
योगदान
आर्यभट्ट ने π (पाई) के मूल्य की संकल्पना की।
पृथ्वी भी ध्रुव तारे की तरह घूमती है (आर्यभट्ट द्वारा सिद्ध)
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